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________________ वनस्पति काय, दो लाख बेइन्द्रिय, दो लाख तेइन्द्रिय, दो लाख चौरिन्द्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाक तिर्यञ्च और चौदह लाख मनुष्य ऐसे चार गति में चौरासी लाख जीव योनि के सूक्ष्म बादर, त्रस स्थावर, पर्याप्ता अपर्याप्ता, जानते - अनजानते किसी भी जीव को हना हो, हनाया हो, हनते हुए को भला जाना हो, मन, वचन और काय से अठारह लाख चौबीस हजार एक सौ बीस बार तस्स मिच्छामि दुक्कडं । क्षमापना सूत्र खामि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमन्तु मे । मित्ती मे सव्व-भूएसु, वेरं मज्झं न केाई ॥ १ ॥ एव महं आलोइअं, निंदियं गरिहियं दुगंच्छियं सम्मं । श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ११३
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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