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३८ सुझाव को स्वीकार करने वाला व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से ही स्वीकार करता है। उसकी इच्छा ही सर्वोपरि होती है। इसीलिए आग्रह और दवाब में ग्रहण किये गये नियम-व्रत आदि खण्डित हो जाते हैं और स्वेच्छा से लिए गये नियमों का व्यक्ति दृढ़तापूर्वक निष्ठा से पालन करता है। __ अतः अनाग्रह व्यक्ति के चरित्र को स्वच्छ बनाता है, उसमें दृढ़ता और निर्भीकता का संचार करता है, स्व-निर्णय और इच्छाशक्ति तथा संकल्पशक्ति को विकसित करता है।
अनेकान्त (स्याद्वाद) विश्व-मानव के वैचारिक जगत को अनेकान्तवाद जैन धर्म की अनुपम देन है। यह वैचारिक विरोधों को उपशान्त करने में सक्षम सिद्धान्त है। अनेकान्त एक वाद है, विचारधारा है और स्याद्वाद है कथन-शैली, कथन का
प्रकार ।
स्याद्वाद सिद्धान्त अपेक्षा पर आधारित है। किसी एक अपेक्षा से कथन करना स्याद्वाद की शैली है।