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________________ राजमार्ग है, मानव सम्मान का सिद्धान्त है। और आग्रह विप्लव, विकलता और अशांति एवं संघर्ष का। __ जैन आगमों में अनाग्रह का स्वर ही गूंज रहा है। भगवान महावीर स्वयं तथा उनके अनुयायी श्रमण वर्ग साधना के इच्छुक व्यक्ति को यथातथ्य उपदेश देते हैं, सत्यस्थिति का ज्ञान करा देते हैं। लेकिन यह आग्रह कभी भी नहीं करते कि तुम श्रमणत्व ग्रहण कर लो, दीक्षित हो जाओ। . यदि वह व्यक्ति स्वयं ही व्रत आदि लेने की प्रार्थना करे तब भी इतना ही कहते हैं जहासुहं देवाणुप्पिया! ' हे देवानुप्रिय। जिसमें तुम्हें सुख हो, वैसा करो। ___ न कोई दबाव, न जबरदस्ती और न किसी प्रकार का प्रलोभन कि श्रमण या श्रावक बन जाने के बाद तुम्हें संसार में यश-कीर्ति की प्राप्ति होगी और आयु समाप्त होने पर स्वर्गों के सुख भोगोगे। यह भय भी नहीं कि श्रमणत्व या श्रावकव्रत धारण न किये तो नरक के घोर दुःख
SR No.006268
Book TitleJain Dharm Ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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