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२२ मर्यादा, भूमि की व्यर्थ खुदाई का परिहार आदि विषयों पर जैन धर्म ने मानव जीवन को अत्यन्त उपकारक सन्देश दिया है जो आज के सन्दर्भ में जीवन-सन्देश बन रहा है। __ इन पाँचों स्थावरकाय जीवों की बेतहाशा हिंसा मनुष्य के लिए आत्मघाती प्रवृत्ति सिद्ध होगी।
त्रस जीवों की सुरक्षा और संरक्षण भी पृथ्वी के संतुलन के आवश्यक अंग हैं। यह तर्क व्यर्थ है कि पशुओं की संख्या अधिक बढ़ जायेगी तो मानव को रहने को स्थान भी नहीं मिलेगा। सच्चाई यह है कि प्रकृति का अपना एक संतुलन है जिसे वह अपने नियमित चक्र से स्वयें ही स्थिर रखती है।
सशु-पक्षी-कीट-पतंग आदि सभी की इस संतुलन में अदृश्य-अनजानी भूमिका है। प्रकृति स्वयं ही इन जीवों का ह्रास और विकास संतुलन की आवश्यकता के अनुसार करती रहती है। त्रस जीवों की हिंसा करके प्रकृति की व्यवस्था में मानव का हस्तक्षेप, उसके स्वयं के लिए भी हानिप्रद सिद्ध हो रहा है।