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________________ रखें, माँ जैसी सेवा परिचर्या कर सकती है ? धन कभी भी मनुष्य को, मनुष्य का मित्र नहीं बनने देता । धन के कारण तो मनुष्य मनुष्य का शत्रु बन जाता है । मित्रता, प्रेम, त्याग और सेवा से ही मिलती है, प्रशंसा और कीर्ति धन से नहीं, कर्तव्य-पालन से मिलती है । मानसिक प्रसन्नता और आत्म-सन्तोष धन से कभी किसी को मिला है ? नहीं । इसलिए युवा वर्ग को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । इन आंखों में लक्ष्मी के सपने नहीं किन्तु कर्तव्य-पालन और सेवा एवं सहयोग के संकल्प सँजोओ। अधिकार बनाम कर्तव्य आज चारों तर्फ अधिकारों की लड़ाई चल रही है । परिवार में पुत्र कहता हैमेरा यह अधिकार है, पुत्री कहती है-मेरा यह अधिकार है । पत्नी माता-पिता, सभी
SR No.006267
Book TitleJage Yuva Shakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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