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(५८) धन, सुख-सुविधायें, ऊंचा पद, ऐशोआराम यह मनुष्य-जीवन का लक्ष्य नहीं है, ये तो एकमात्र जीने के साधन हैं । साधन को साध्य समझ लेना भूल है । संसार में लाखों, करोड़ों लोगों को अपार सम्पत्ति और सुख साधन प्राप्त हैं, फिर भी वे बेचैन हैं और रूखी-सूखी खाकर भी मस्ती मारने काले लोग दुनिया में बहुत हैं ।
युवकों का दृष्टिकोण-आज धनपरक हो रहा है या सुखवादी होता जा रहा है । धन को ही सब कुछ मान बैठे हैं। उन्हें धन की जगह त्याग और सेवा की भावना जगानी होगी । संसार धन से नहीं, त्याग से चलता है, प्रेम से चलता है । एक माता पुत्र का पालन-पोषण किसी धन या उपकार की भावना से नहीं करती, वह तो प्रेम और स्नेह के कारण ही करती है । क्या कोई नर्स जिसको आप चाहें सौ रूपया रोज देकर