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________________ (२५) है - युवाशक्ति में दिशाहीनता और निराशा छाई हुई है, कर्तव्य भावना का अभाव और देश व मानवता के प्रति उदासीनता ही इस विनाश और विपत्ति का कारण है । इसलिए आज युवाशक्ति को कर्तव्यबोध करना है । जीवन का उद्देश्य, लक्ष्य और दिशा स्पष्ट करनी है । संस्कृत में एक सूक्ति है यौवनं धन-संपत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता । एकैकमप्यनर्थाय किमुयत्र चतुष्टयम् ? यौवन, धन-सम्पत्ति, सत्ता, अधिकार और अविवेक (विचारहीनता) ये प्रत्येक ही एक-एक दानव हैं, यदि ये चारों एक ही स्थान पर एकत्र हो जायें, अर्थात् चारों मिल जाएँ, तो फिर क्या अनर्थ होगा ? कैसा महाविनाश होगा ? कुछ नहीं कहा जा सकता । युवक, स्वयं एक शक्ति है, फिर वे संगठित हो जायें, एकता के सूत्र में बंध जायें, अनुशासन में चलने का संकल्प ले लें,
SR No.006267
Book TitleJage Yuva Shakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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