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(१८) हो जाता है, किन्तु जल प्रवाह बहता रहे, तो जल स्वच्छ और मधुर बना रहता है । इसलिए प्रौढ अवस्था के बाद मनष्य को समाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा तथा दान एव परोपकार की तरफ विशेष रूप से बढ़ना चाहिए । यह सेवा, परोपकार एवं दान ही "विसर्जन" का रूप है, जो मुख्य रूप में वृद्ध अवस्था, या परिपक्व अवस्था में किया जाता है, किन्तु यहाँ अधिक इस विषय में अभी नहीं कहना है, यहां हमें युवाशक्ति के विषय पर ही चिन्तन करना है।
मैंने कहा था कि समाज में, संसार में चाहे जिस देश का या राष्ट्र का इतिहास पढ़ लीजिए, आपको एक बात स्पष्ट मिलेगी कि धार्मिक या सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक, जिस किसी क्षेत्र में जो क्रान्तियाँ हुई हैं, परिवर्तन हुए हैं, और नवनिर्माण कार्य हुए हैं, उनमें पचहत्तर प्रतिशत युवाशक्ति का योगदान है । इसलिए