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निरुद्देश्य ही चार मास तक एक स्थान पर नहीं रुकते । अपितु चातुर्मास का उनका एक निश्चित उद्देश्य होता है और वह उद्देश्य मुख्यरूप में दो हैं-(१) धर्मजागरणा तथा (२) तपःसाधना । ।
चातुर्मास में एक स्थान पर रहकर श्रमण-श्रमणी स्वकल्याण के साथ-साथ पर-कल्याण, लोककल्याण की साधना करते हैं । क्योंकि जैनश्रमण जितना स्वकल्याण के लिए प्रतिबद्ध होता है, उतना ही लोक-कल्याण के लिए भी । इसीलिए उसका एक विरुद 'स्व-पर-कल्याणकारी भी कहा गया है ।
___ चातुर्मास के कल्प-सम्बन्धी एक और बात जानने योग्य है । शास्त्रों में ऐसा उल्लेख आता है कि प्रथम और अन्तिम तीर्थकर के श्रमण आषाढ़ी पूनम से
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