________________
अत्यधिक आदर के साथ स्मरण करके उन्हें सम्मानपूर्ण स्थान दिया गया है।
वर्ण-संयोजन : मंत्र का शरीर प्रत्येक वर्ण की एक ध्वनि होती है, एक संकेत होता है । उन ध्वनियों और संकेतों के उचित समायोजन से मंत्र की शब्द-रचना अथवा उसके शरीर का निर्माण होता है, वह आकार ग्रहण करता है । मंत्र साधना के समय साधक इन शब्दों का उच्चारण करता है।
उच्चारण के तीन मुख्य केन्द्र हैंनाभि-स्थान, हृदयस्थान और कंठस्थान । मंत्रशास्त्र, स्वरशास्त्र और ध्वनिविज्ञान की तो मान्यता है कि स्वर सर्वप्रथम नाभिस्थान में उत्पन्न होता है और वहाँ से हृदय-स्थान, कंठस्थान में होता हुआ, स्वरयंत्रों-कंठ, तालु, जिह्वामूल के सहयोग से उच्चरित