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(३५) सफेद रंग की कल्पना करनी चाहिए । 'पद' जाप के समय साधक श्वेत रंग को कल्पना की आँखों से देखेगा किन्तु धीरे-धीरे वह श्वेतरंग चर्म चक्षुओं में झलकने लग जाता है और साधक को श्वेत चक्र दीखता है।
दो शब्द हैं-करना और होना । श्वेतवर्णी अक्षरों का ध्यान करना चाहिए-ऐसा नमस्कार महामत्र माहात्म्य आदि अनेक मंत्र-शास्त्रीय ग्रन्थों में उल्लेख पाया जाता है । यह निर्देश प्रारम्भिक अभ्यासी साधक को दृष्टिगत रखकर किया गया है, ऐसा प्रतीत होता है । जब अभ्यास सुदृढ़ हो जाता है तो ध्यानावस्थित होते ही अक्षर चमकीले श्वेतवर्णी मानस पटल पर दृष्टिगोचर होने लगते हैं । सायास आवश्यक नहीं रहता, अनायास-सहज ही सब कुछ घटित होने लगता है। इसका एक कारण और भी है, वह