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(३३) वीर्य, ओज-तेजवर्धक रसायन । __ मंत्र के विषय में भी यही तथ्य है । घनीभूत श्रद्धा और भावना की तीव्र धारा का संस्पर्श पाकर मंत्र के अक्षर और संपूर्ण मंत्र सजग, सजीव से हो उठते हैं, और उनमें से अचिन्त्य शक्ति उसी प्रकार प्रस्फुटित हो उठती है जैसे पारे से रसायन । इसे ही कहते हैं मंत्र का देवता जाग्रत होना।
वैज्ञानिक विधि से परमाणु (जैन दर्शन की मान्यता के अनुसार स्कन्ध) विखंडन होने पर असीम ऊर्जा प्रगट हो जाती है । वैसे ही भावना से मंत्र के शब्द परमाणु (स्कन्ध) विखंडित होकर ऊर्जा के अक्षय स्रोत बन जाते हैं।
नमोकार महामंत्र का साधक भी मंत्र के - सजग और सिद्ध होने पर अपनी अन्तरात्मा