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हुण्डिक चोर की कथा प्रसिद्ध ही है । सेठजी ने उसे नमोकार मंत्र सिखाया, लेकिन पूरा मंत्र तो दूर पहरेदारों के पीछा किया जाने से भयभीत वह नमो अरिहंताणं भी न याद कर सका और 'ताणं ताणं ताणं, सेठ वचन परमाणं' गहरी श्रद्धा - निष्ठापूर्वक इतना बोलने मात्र से चमत्कार हो
गया ।
यद्यपि यह चमत्कार श्रद्धा और निष्ठा तथा अडिग विश्वास का फल था; किन्तु इससे शब्दोच्चारण और अर्थ ज्ञान का महत्व कम नहीं हो जाता । यदि 'ताणं' शब्द के शब्दार्थ पर विचार करें तो ताण का अर्थ रक्षक अथवा शरणदायी होता है । इस संदर्भ में णमोकार मंत्र को अनजाने ही सही हृदय की गहराइयों से उसने शरणभूत माना । श्रद्धा के साथ यदि शब्दोच्चारण और मंत्र के पदों, शब्दों, अर्थ का ज्ञान भी हो तो साधक की ध्येय पूर्ति शीघ्र होती है