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(२०) . महामंत्र वह कहा जाता है जिसकी साधना से साधक को निम्न विशिष्टताओं की उपलब्धि हो(१) आत्मिक-विकार, विसंगतियाँ आदि समाप्त हों। (२) मानसिक संकल्प-विकल्पों की उपशान्ति हो। (३) आन्तरिक शक्तियाँ ऊर्ध्वगामिनी बनें, ऊर्जस्वल हों। (४) आत्मा तथा आत्मिक गुणों का साक्षात्कार हो, गुणों में गुणात्मक वृद्धि हो । आत्म-ज्योति में उत्कर्ष का संचार हो। (५) वचन-वाणी में प्रभावोत्पादकता का समावेश हो। (६) मानसिक, बौद्धिक ऊर्जा वृद्धिंगत हो, बुद्धि में स्फुरणा हो । (७) कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ तथा नोकषाय-वेद (काम) आदि की