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इस ३५ अक्षरों वाले मंत्र में ३४ स्वर और ३० व्यंजन हैं । ३४ स्वर मानने का कारण मंत्रशास्त्र का सिद्धान्त और व्याकरण के नियम हैं । इनके अनुसार नमो अरिहंताणं का 'अ' लुप्त हो जाता है । इस प्रकार इस मंत्र में मंत्रशास्त्र के अनुसार ३४ स्वर और ३० व्यंजन अर्थात् ६४ वर्ण हैं और देवनागरी लिपि के भी ६४ ही वर्ण माने गये हैं । अतः संकेतात्मक रूप से इस मंत्र में समस्त श्रुत ज्ञान अर्थात् वर्ण विज्ञान गर्भित हो जाता है ।
पुनः प्राकृत भाषा में अ, इ, उ ये मूल स्वर तथा ज, झ, ण, त, द, ध, य, र, ल, व, स और ह मूल व्यंजन माने गये हैं । ये सब इस महामंत्र में इस प्रकार संगुम्फित हो गये हैं, कि विशेष प्रभावशाली बन गये हैं ।
वर्ण - संयोजन की वैज्ञानिकता
वर्ण-संयोजन की वैज्ञानिकता वर्णोंअक्षरों-स्वरों के समन्वय में निहित है । यह