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लग गई जिससे समूचे शरीर में दाह सी लगने लगी, जैसे वह आग में जल रहा हो, वह तड़फ रहा था, बेचैन हो रहा था, हाय-हाय कर रहा था, कोई उसे गुलाब का शीतल शर्बत पिलाता, कोई बादाम की ठंडाई, परन्तु उसे पलभर का चैन नहीं, बड़ी विषम स्थिति थी उसकी, भीतर की जलन, छाती की दाह उसे जला रही थी, उसकी हालत देखकर सभी चिन्तित थे । उसी समय वैद्यराज आये, नाड़ी देखी और कहाइसे लू लग गई है जब तक लू नहीं उतरेगी, ये ठंडे शीतल मीठे पेय सब व्यर्थ हैं । भीतर में बेचैनी है, तो ऊपर की ठंडाई कुछ भी चैन नहीं देगी । अनुभवी वैद्यराज ने उपचार किया, लू उतारी । उसकी भीतरी दाह शान्त हो गई तो उसे चैन भी पड़ी।
मानव का मन-आज अशान्त है, हजारों प्रकार की चिन्ताएं, टेन्शन, तनाव,