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पानी भरा पड़ा रहता है जिससे भी उसमें क्षुद्र जीव पैदा हो जाते हैं।
ऐसी दशा में और गर्मियों के दिनों में जब पानी की कमी हो जाती है तब जल-विभाग के अधिकारी भी समाचारपत्रों में सूचना निकालते हैं-जनता पानी को उबालकर और छानकर पीये तथा भोजन बनाने के उपयोग में ले ।
यह जैन मनीषियों की दीर्घदृष्टि ही कही जायेगी कि उन्होंने सैकड़ों, हजारों वर्ष पहले ही जैन श्रावकों को और यहाँ तक कि सभी मनुष्यों को छने पानी के प्रयोग की प्रेरणा दी।
एक प्रसिद्ध सूक्ति हैदृष्टिपूतंन्यसेद्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्
आंख से सामने का रास्ता देखकर पैर रखो और कपड़े से छानकर पानी पीओ, तो अनेक रोगों से बचते रहोगे।
आज के समय में तो ५०% बीमारियां पानी की अशुद्धि के कारण होती हैं ।