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अपने प्रमाद, असावधानी, कषाय, राग-द्वष आदि के कारण कर्म बंध करता है और अपने ही कर्मों के फलस्वरूप दुःख अथवा सुख पाता है। संसार की कोई अन्य शक्ति उसे सुख या दुःख दें नहीं सकती और न ही उसके पापों के लिए उसे क्षमा प्रदान कर सकती है।
संवर, निर्जरा तत्व इस तथ्य के द्योतक हैं कि आत्मा यदि पुरुषार्थ करे तो कर्मों के निबिड़ बंधन को तोड़कर मोक्ष प्राप्त कर सकती है । अनन्तज्ञान, दर्शन, सुख-वीर्य आदि अपने निज गुणों को प्रकट कर सकती है।
इन नव तत्वों के अध्ययन-मनन-चिन्तन और हृदयंगम करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि प्रत्येक संसारी मानवात्मा अपनी सत्य स्थिति से परिचित हो जाती है, अपनी शक्तियों का उसे भान हो जाता है और उसमें सत्यश्रद्धा, विवेक तथा
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