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जैसे मार्गश्रम से थके हुए यात्री को वृक्ष की शीतल छाया सहायक होती है।
छाया मानव को रुकने के लिए बाध्य नहीं करती; किन्तु यदि यात्री स्वयं ही ठहरना चाहे तो वह सहायक अवश्य हो जाती है। __ पक्षी उड़ता-उड़ता रुक जाता है, मनुष्य चलता-चलता विश्राम के लिए ठहर जाता है, इन सब स्थिति (ठहराव) में मुख्य कारण उनकी अन्तर् इच्छा तथा सहायक कारण अधर्मास्तिकाय बनती है।
महत्व धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य संसार की व्यवस्था के लिए बहुत ही आवश्यक हैं । धर्मद्रव्य के अभाव में संसार की सारी गतिविधियाँ ही रुक जायेंगी। समस्त हलन-चलन बंद हो जायेगा । न पवन चल सकेगा, न सागर में उमियां-तरंगें ही उछल सकेंगी,
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