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पंचेन्द्रिय हैं। इनके अतिरिक्त नारकी और देव भी संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं । __व्यावहारिक दृष्टि से जीव के लक्षण हैं-(१) जीव परिणामी है, (२) कर्ता है, (३) अपने किये कर्मों का फलभोग करता है और (४) स्वदेह परि. माण है, अर्थात् जिस शरीर में जीव रहता है। उस सम्पूर्ण शरीर में उसकी चेतना व्याप्त रहती
२. अजीव तत्व जैनदर्शन के अनुसार दूसरा तत्व अजीव तत्व है । अजीव तत्व वह है, जिसमें जीवन न हो, चेतनाशक्ति न हो। ___ अजीव तत्व के ५ भेद हैं-(१) पुद्गलास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय, (३) अधर्मास्तिकाय, (४) काल, और (५) आकाशास्तिकाय । इनमें से पुद्गलास्तिकाय रूपी है और शेष ४ अरूपी । रूपी का अभिप्राय है- जिसमें (१) स्पर्श, (२). रस,
( १३ ।