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________________ द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का? ...45 रूप से अभयदान मिलता है। परमात्म चरणों में उन्हें स्वाभाविक मृत्यु की प्राप्ति होती है अन्यथा सांसारिक कारणों से तो उनकी मृत्यु निश्चित है ही। व्यवहार में भी पुष्प की भेंट सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। इस कारण पुष्पपूजा को दोषपूर्ण नहीं माना है। ___ इसी प्रकार धूप, दीप, फल आदि पूजाओं में भी जो द्रव्य अर्पित किए जाते हैं उनमें भी हिंसा का दोष नहींवत है क्योंकि वहाँ उनके प्रति आसक्ति या उनकी हिंसा के भाव नहीं है अपितु त्याग और जीव दया की भावना है। इन सब द्रव्यों के द्वारा परमात्मा का गुण स्मरण, चिंतन आदि करते हुए भक्ति, तल्लीनता एवं एकाकारता के कारण सद्धर्म की प्राप्ति हो सकती है जो जीव के मुक्ति अवरोधों को समाप्त करती है। जिस प्रकार पानी की बूंद साँप के मुँह में जाने से विष में परिवर्तित हो जाती है और वही पानी की बूंद स्वाति नक्षत्र में यदि सीप में जाए तो मोती बन जाती है। इसी प्रकार शारीरिक सुख एवं भोगोपभोग के लिए प्रयुक्त द्रव्य कर्मबन्धन का कारण अर्थात विष तुल्य बन जाता है वहीं परमात्म भक्ति में निरासक्त भाव से प्रयुक्त द्रव्य कर्म मुक्ति में हेतुभूत बनता है। अत: परमात्म भक्ति के निमित्त सचित्त द्रव्यों की मात्र स्वरूप हिंसा होने से हिंसा का दोष नहीं लगता अपितु अहिंसा पालन का लाभ मिलता है। शंका- अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस से प्रक्षाल करना दोषपूर्ण कैसे? समाधान- अक्षय तृतीया के दिन भगवान आदिनाथ का इक्षुरस से प्रक्षाल करने का विधान सर्वत्र देखा जाता है। जब किसी भी क्रिया के मूल आशय को समझे बिना जब उसका अंधानुकरण किया जाता है तो वह कर्म निर्जरा की अपेक्षा कर्म बंधन का कारण बन जाती है। इक्षुरस से भगवान आदिनाथ ने पारणा किया था और उसी निमित्त भगवान का इक्षुरस से प्रक्षाल किया जाता है। वर्तमान में बढ़ रहे अविवेक, आशातना आदि को देखते हुए अधिकतम आचार्य इसका निषेध करते हैं। सर्वप्रथम तो भगवान ने उसे आहार रूप में ग्रहण किया अत: उससे प्रक्षाल करना किसी भी रूप से योग्य नहीं लगता। इक्षुरस की मिठास के कारण असंख्य छोटे जीव-जन्तु और चींटिया उत्पन्न होती है तथा उनकी हिंसा का दोष लगता है। अच्छे से सफाई आदि न हो तो अनेक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होने की संभावना भी रहती है। प्रक्षाल हेतु लोगों की भीड़,
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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