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42... शंका नवि चित्त परिये!
का चिंतन भी इसके माध्यम से हो सकता है। अत: आध्यात्मिक ऊर्ध्वारोहण की अपेक्षा से आंगी में वरख का प्रयोग करना औचित्यपूर्ण है। वर्तमान में वरख का निर्माण यांत्रिक साधनों से होने के कारण उसमें पूर्ववत् जीव हिंसा आदि का भी दोष नहीं लगता फिर भी। श्रावक वर्ग को द्रव्य की शुद्धता एवं श्रेष्ठता के विषय में जागृत रहने की आवश्यकता है।
शंका- परमात्मा की पूजा कब करनी चाहिए? तथा शास्त्रोक्त नियमों में किसी प्रकार का अपवाद मार्ग है?
समाधान- जैनाचार्यों ने श्रावक के लिए त्रिकाल पूजा का विधान किया है। इसमें प्रातःकाल में वासक्षेप पूजा, मध्याह्न काल में अष्टप्रकारी पूजा एवं संध्या के समय धूप-दीप-आरती आदि का वर्णन है। यदि किसी श्रावक के लिए व्यापार आदि के कारण त्रिकाल पूजा करना संभव न हो तो वह एक ही बार में सारी पूजाएँ कर सकता है। वर्तमान की Fast Life एवं 9 से 5 के ऑफिस शेडयुल में त्रिकाल पूजा का विधान कुछेक श्रावकों द्वारा ही पालन किया जाता है। __ श्राद्धविधि के अनुसार आजीविका आदि सुयोग्य कारण होने पर भी दो बार या एक बार पूजा अवश्य करनी चाहिए। परंतु यह अपवाद मार्ग है तथा उत्सर्ग मार्ग को लक्ष्य में रखकर ही अपवाद मार्ग का सेवन करना चाहिए। जब भी संभव हो तब श्रावक को मूल मार्ग का सेवन अवश्य करना चाहिए। परंतु सूर्योदय से पूर्व एवं सूर्यास्त के पश्चात पूजा नहीं करनी चाहिए।
शंका- साथिया अक्षत का ही बनाया जाए, क्या अन्य धान्यों का निषेध क्यों है?
समाधान- धान्यों में अक्षत (चावल) ही एक ऐसा द्रव्य है जो अखंड और अचित्त होता है शेष धान्य अखंड अवस्था में सचित्त होते हैं। अक्षत बोने पर जिस प्रकार वापस नहीं उगते उसी प्रकार आत्मा को भी अक्षय मोक्ष अवस्था की प्राप्ति हो उसके प्रतीक रूप में अक्षत का प्रयोग किया जाता है। अक्षत को एक मांगलिक धान्य भी माना गया है, लोक व्यवहार में इसका उपयोग अनेक शुभ कार्यों में देखा जाता है।
इस तरह चावल का प्रयोग साथिया बनाने हेतु तो होता ही है, परन्तु कहीं भी अन्य धान्यों का निषेध नहीं है। मांडला बनाते समय एवं ओलीजी में पाँच प्रकार के धान्यों का प्रयोग किया जाता ही है। आचारोपदेश नामक प्राचीन ग्रन्थ