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कैसे बचें विराधना से? ...81 Jewellery देने से काम चल सकता है? यदि नहीं तो फिर परमात्मा के प्रति ऐसे हीन भाव क्यों? परमात्मा की भक्ति में तो अमूल्य रत्न, सोना, चाँदी आदि का उपयोग करना चाहिए। कई लोग तर्क देते हैं कि आजकल चोरियाँ इतनी बढ़ रही है कि मन्दिर के मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा कैसे करें? किसी अपेक्षा वे लोग सही हैं कि चोरियाँ बढ़ गई है। परन्तु क्या चोरियों के डर से गृहस्थों ने सोना पहनना बंद कर दिया? जिस प्रकार गृहस्थ स्वद्रव्य की रक्षा करता है उसी सतर्कता एवं अपनत्व की भावना के साथ देव द्रव्य की रक्षा करें तो चोरी का प्रश्न उपस्थित ही नहीं होता। जब मन्दिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं हो सकता तो फिर साक्षात प्रतिमा के ऊपर लोहे से बने गहनों का प्रयोग कैसे हो सकता है?
शंका- धर्म के लिए धन का अर्जन करने में क्या दोष है? समाधान- आचार्य हरिभद्रसूरि हारिभद्रीय अष्टक में कहते हैं
धर्मार्थं यस्य वित्तेहा, तस्यानीहा गरीयसी । प्रक्षालनाद्धि पंकस्य, दूराद्स्पर्शनं वरम् ।।
हारिभद्रीय अष्टक, 4/6 धर्म के लिए धन की इच्छा करना शुद्ध पैरों को कीचड़ में भरकर फिर उन्हें जल से धोने के समान है। इससे तो अच्छा यही है कि पैरों का कीचड़ से स्पर्श ही न होने दें। इसी प्रकार पहले पाप करके धन कमाने और फिर धर्म करके उस पाप का क्षय करने से तो अच्छा है कि वैसा धनार्जन किया ही न जाए। अत: यह स्पष्ट है कि धर्म को हेतु बनाकर धनार्जन नहीं करना चाहिए।
शंका- जिनमन्दिर में पूजा की सामग्री क्यों नहीं रखनी चाहिए?
समाधान- जिनमन्दिर में पूजा की पेटी आदि सामग्री रखना दोष पूर्ण है क्योंकि सर्वप्रथम तो श्रावक अपने घर से आवश्यक सामग्री जयणा पूर्वक साथ लेकर आए यह मूल विधि है। मूल मार्ग का अनुसरण करने से विधि की नियमितता बनी रहती है तथा भावोल्लास बढ़ता है। मन्दिर में नैवेद्य, बादाम आदि रखने से उसमें चीटियाँ आदि आने की संभावना रहती है। मार्ग में आ रहे अन्य मन्दिरों की द्रव्यपूजा के लाभ से भी वंचित रह जाते हैं। द्रव्य खत्म हो गया है यह ध्यान में न रहे तो उस दिन द्रव्य पूजा के लाभ से वंचित रह सकते हैं। इसी के साथ घर से द्रव्य लाते हुए देखकर मार्ग में अन्य लोगों को द्रव्य पूजा