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76... शंका नवि चित्त परिये ! श्रावक स्वयं भी पुष्प चुनकर ला सकता है अथवा घर में बगीचा आदि भी लगा सकता है परन्तु उनका प्रयोग केवल जिन पूजा के निमित्त ही करना चाहिए।
शंका- अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों के दिन मदिर में फल आदि चढ़ा सकते हैं?
समाधान- यदि श्रावक समस्त सावध कार्यों से निवृत्त होकर पौषध ग्रहण कर ले तो उसे फल आदि कोई भी द्रव्य नहीं चढ़ाना चाहिए। कई लोग तर्क करते हैं कि जब हम अष्टमी, चौदस को हरा खाते नहीं तो फिर परमात्मा को कैसे चढ़ा सकते हैं? इसका सटीक जवाब तो यह है कि यदि हम उपवास करके घर और ऑफिस के सभी कार्य कर सकते हैं तथा Party, Metting और Functions भी attend कर सकते हैं तब फल क्यों नहीं चढ़ा सकते? इन्हें नहीं खाने के पीछे तो जीव रक्षा एवं त्याग की भावना होती है, वहीं मन्दिर में चढ़ाने के पीछे द्रव्य त्याग एवं आसक्ति को न्यून करने का उद्देश्य होता है। इसी के साथ उन जीवों को हमारी तरफ से अभयदान मिलता है एवं उन्हें परमात्मा की शरण प्राप्त होती है। पर्व दिवसों में अधिक उल्लास एवं वर्धित भावों से परमात्म भक्ति करनी चाहिए। सुस्पष्ट है कि अनाहारी पद प्राप्ति की इच्छा से पर्व दिवसों में फल चढ़ाए जाए तो कोई दोष नहीं है।
शंका- धूप आदि के कारण जले हुए वस्त्र पूजा में पहन सकते हैं या नहीं?
समाधान- श्रावक को पूजा हेतु उत्तम Quality के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। शास्त्रों में जले, फटे, सांधे एवं सिले हुए वस्त्रों का प्रयोग पूजा हेतु निषिद्ध है। कई लोगों की धारणा है कि पूजा की अधिक ड्रेस रखने पर आशातना होती है अत: वे पुराने वस्त्रों का ही प्रयोग पूजा हेतु करते रहते हैं। परंतु जिस प्रकार Party Wear कपड़े यदि एक-दो कार्यक्रमों में पहन लें तो फिर हमें नए चाहिए। हम वही कपड़े पहनकर वापस नहीं जाते, चाहे वह वस्त्र सामान्य दिनों में उपयोगी हो या न हो। इसी तरह की सोच हम पूजा के वस्त्रों के लिए क्यों नहीं रखते?
प्रश्न हो सकता है कि पुराने वस्त्रों का क्या करें? पुराने वस्त्र घर में पहनने हेतु प्रयोग में लिए जा सकते हैं या फिर साधार्मिक भाई बहिन को भी दे सकते हैं। आशातना तो तब लगती है जब हम पूजा की जोड़ कपाटों में बंद रखे और