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62... शंका नवि चित्त धरिये ! चाहिए अन्यथा ऐसे भंडार नहीं रखने चाहिए। चाँदी एवं बहुमूल्य रत्न प्रतिमाओं को रखने हेतु लॉकयुक्त सुरक्षित व्यवस्था होनी चाहिए। चाँदी की आंगी आदि अन्य वस्तुएँ जिम्मेदार श्रावकों के हस्तगत रखनी चाहिए, मन्दिरों को पुजारियों के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए तथा उन्हें उचित मेहनताना देकर संतुष्ट रखना चाहिए। इस प्रकार जागरूकता एवं सतर्कता रखते हुए देव द्रव्य की सुरक्षा की जा सकती है।
शंका- जिनमन्दिर में पुजारियों का स्थान क्या होना चाहिए?
समाधान- आजकल श्रावकों की पुजारियों पर निर्भरता देखते हुए यही प्रतीत होता है कि जिनमन्दिर स्वयं की आराधना हेतु नहीं अपितु पुजारियों के लिए बनाए गए हैं। मन्दिर के द्वारोद्घाटन से लेकर प्रक्षाल, पूजा, आरती आदि सभी कर्तव्य पुजारी के होते हैं। श्रावक तो केवल प्रभु दर्शन-पूजन की रस्म अदा करने जाते हैं। परंतु यह एक अनुचित परम्परा है। इस प्रकार वेतनभोगी कर्मचारियों के भरोसे मन्दिर के समस्त कार्य छोड़ने से वीतराग परमात्मा के प्रति अहोभाव समाप्त होते जा रहे हैं। यथार्थतः सामान्य मन्दिरों में पुजारी नहीं भी हो तो चल सकता है। जिस प्रकार बालक के समस्त कार्य माता के द्वारा उल्लास एवं जागृतिपूर्वक किए जाते हैं उसी तरह श्रावकों को मन्दिर के सभी छोटे-बड़े कार्य जयणा एवं भक्तिपूर्वक स्वयं को सम्पन्न करने चाहिए।
जिस समय से त्रिकाल पूजा के क्रम में परिवर्तन आया है तब से मन्दिरों में पुजारियों की आवश्यकता भी बढ़ गई है। आज मन्दिरों में श्रावक हो या न हो पूजारी होना जरूरी है। यदि दो दिन के लिए भी पुजारी छुट्टी पर चला जाए तो सब की हालत पस्त हो जाती है। यदि गंभीरतापूर्वक इस विषय में विचार करें तो आज मन्दिरों में आशातनाएँ बढ़ती जा रही है। पुजारी तो प्रत्येक कार्य मात्र पैसे के लिए करता है। प्रात:काल में मन्दिर के उद्घाटन से लेकर समस्त कार्य उनके द्वारा कर्तव्य बुद्धि से नहीं अपितु काम को निपटाना है इस रूप में अविधिपूर्वक किए जाते हैं। पंचधातु की प्रतिमा एवं गट्टाजी आदि तो इस प्रकार उठाए जाते हैं मानो कोई खिलौना उठा रहे हो, बिना नहाएं एवं पूजा के वस्त्र पहने मूल गंभारे में जाना उनके लिए आम बात है तथा अधिकांश पुजारियों के कपड़े हलवाई से भी बदतर हालत में होते हैं।