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वर्तमान में गृह मन्दिरों का औचित्य कितना? ...51 अज्ञानवश कोई अविधि हो जाए तो उसकी शुद्धि हो सकती है। परन्तु जान बूझकर प्रमाद या अपनी सुविधा हेतु गृह मन्दिर नहीं बनवाना बहुत बड़ी आशातना है। घर में रहते हुए माता-पिता या बालकों का पोषण नहीं कर सकें तो कोई दोष नहीं है किन्तु असमर्थता के कारण उन्हें घर से निकाल देना तो अक्षम्य दोष है। इसी तरह परमात्मा के विषय में समझना चाहिए। यदि गृह मन्दिर आशातना का कारण बनता हो तो उसके निराकरण का प्रयास करना चाहिए न कि गृह मन्दिर का उत्थापन कर देना चाहिए।
शंका- जिस परिवार में महिलाएँ अंतराय का पालन नहीं करती हो वहाँ घर मन्दिर बनाया जा सकता है?
- समाधान- आज के अमर्यादित प्रगतिशील युग में अंतराय (M.C.) पालन को लोग झंझट एवं रूढ़िवादिता समझते हैं। एकल परिवार की संस्कृति एवं बाहर रहने वाले Educated लोग इसे प्राय: असंभव एवं असार्थक मानते हैं। परंतु वैज्ञानिक, मानसिक, प्राकृतिक एवं शारीरिक दृष्टि से इसका पालन जरूरी एवं हितकारी है। जिन घरों में सदस्यों की संख्या अधिक हो या काम चल सकता हो उन्हें पालन करने का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए फिर भी यदि किसी के लिए संभव नहीं हो तो ऐसे घरों में अलग कमरे या कपाट आदि में घर मन्दिर बनाना चाहिए। यदि अंतराय के कारण से गृह मन्दिर बनाना ही बंद हो जाए तब तो कुछ समय में घर मन्दिर की परम्परा ही लुप्त हो जाएगी।
शंका- महंगाई के युग में जहाँ छोटे-छोटे घरों में रहने की जगह परिपूर्ण नहीं है वहाँ गृह चैत्य कैसे बनवाएँ?
समाधान- जहाँ चाह हो वहाँ राह मिल ही जाती है। छोटे-छोटे घरों में भी T.V., Freeze, A.C., Computer के लिए जगह बन ही जाती है। Favourate Actor-Actress की फोटो लग ही जाती है। वैसे ही कोई व्यक्ति यदि चाहे तो छोटे घर में भी थोड़ी सी जगह घर मन्दिर के लिए बना सकता है। यदि अलग से रुम न हो तो Gallery या खिड़की में जैसे A.C. Fit करते है वैसे बना सकते हैं और वह भी संभव न हो तो छोटे कपाट या गोखले में परमात्मा की स्थापना कर सकते हैं। हृदय में जगह हो तो घर में अपने आप जगह बन जाती है।