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206...सज्जन तप प्रवेशिका पारणा करें, फिर सात उपवास एकान्तर पारणे से करें और अन्त में छट्ठ करके पारणा करें।
इसमें 21 उपवास और 16 पारणा कुल 37 दिनों में यह तप पूर्ण होता है।
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर ज्ञान द्रव्य में नौ मोती चढ़ाकर ज्ञान भक्ति करें।
• इस तपस्या काल में सिद्धि प्राप्ति हेतु सिद्ध पद की आराधना करनी चाहिएजाप
साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो सिद्धाणं 888 20 9. क्षीरसमुद्र तप ___हम मध्यलोक में रहते हैं। इस लोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। उनमें पाँचवां क्षीरवर समुद्र है। इसका पानी दूध जैसा श्वेत और उसका स्वाद शक्कर मिश्रित दूध जैसा मीठा है। तीर्थङ्करों के जन्म कल्याणक के समय उनका अभिषेक इसी क्षीरसागर के जल द्वारा किया जाता है। हमारा आचार, विचार
और जीवन क्षीरसागर के पानी जैसी मिठास से युक्त हो, एतदर्थ यह क्षीरसमुद्रतप करते हैं। स्त्रियों में यह तप विशेष प्रचलित है और यह प्राय: पर्युषणों के दिनों में किया जाता है।
इसकी दो विधियाँ इस प्रकार वर्णित हैं -
प्रथम विधि - इस तप में लगातार सात उपवास करके आठवें दिन गुरु भगवन्त को खीर बहराने के बाद स्वयं भी ठाम चौविहार खीर से एकासना करें।
द्वितीय विधि - दूसरी रीति के अनुसार यह तप श्रावण मास में निरन्तर आठ एकासना उसके ऊपर एक उपवास करके किया जाता है।
उद्यापन – इस तप के पूर्णाहुति प्रसंग पर जिनालय में खीर-खांड एवं घृत से भरा हुआ एक थाल रखें, गुरु को अन्नादि बहरायें, ज्ञान-भक्ति करें तथा साधर्मी-भक्ति का उपक्रम रचें। • प्रचलित विधि के अनुसार इसमें निम्न जाप आदि करें - जाप
साथिया खमा. कायो. माला क्षीरवरसम सम्यगदर्शन धराय नमः 7 7 7 20