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________________ 172...सज्जन तप प्रवेशिका एकान्तर उपवास द्वारा किया जाता है। इस तप में 15 उपवास और 15 पारणा कुल एक महीना लगता है। ___ इस तपस्या के दौरान पारणे के दिन मुनियों को सरस भोजन देकर फिर स्वयं को ग्रहण करना चाहिए। इसका यन्त्र न्यास यह है तप दिन- 15, पारणा दिन- 15 |प्र. | द्वि. तृ. | च. | पं. | ष. | स. अ. | न. | द. | ए. द्वा. |. |च. अमा. कृष्णा m r तिथि 0 | पा. | उ. | पा./उ. | प्र. | द्वि. तृ. | च. | पं. | ष. | स. अ. | न. | द. | ए. | द्वा. | त्र. |च. | पू. तप | पा. | उ. | पा. | उ. पा. उ. | पा. उ. | पा.| उ. पा. | उ. पा. | उ. | पा. उद्यापन- इस तप के पूर्ण होने पर यथाशक्ति दान करें, विविध फलों के भार से झुकी हुई विविध शाखाओं से युक्त कल्पवृक्ष की सुनहरे चावलों आदि से रचना करें। जिन-प्रतिमा के आगे नानाविध फलों के भार से अवनत स्वर्ण का अथवा चाँदी का कल्पवृक्ष चढ़ायें। चारित्रनिष्ठ मुनियों को दान दें तथा संघ पूजा एवं साधर्मी भक्ति करें। • प्रचलित परम्परा के अनुगमनार्थ इस तपश्चर्या में अरिहन्त पद की आराधना करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 4. दमयन्ती तप उपलब्ध कृतियों के अनुसार यह तप नल राजा के वियोगावस्था में दमयन्ती द्वारा किया गया था, इसलिए इसे दमयन्ती-तप कहते हैं। इस तप के करने से दमयन्ती के देह व मन रूपी गगन मण्डल पर छाये विपत्तियों के बादल खण्ड-खण्ड होकर नष्ट हो गये, वैसे ही इस तप के प्रभाव से समस्त विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं। यह तप बाह्य जगत के साथ-साथ आभ्यन्तर जगत में छायी
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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