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________________ 170... सज्जन तप प्रवेशिका की आराधना करें। जाप साथिया ॐ नमो अरिहंताणं 12 2. निरुजशिखा तप निरुजशिखा का अर्थ है रोग रहित शिखा । जिस तप के द्वारा मस्तक पर्यन्त सम्पूर्ण शरीर निरोगी बनता है, उसे निरुजशिखा तप कहते हैं। इसमें सर्वाङ्ग निरोग अवस्था को प्राप्त करते हैं, इसलिए यह तप सर्वाङ्गसुन्दर तप की भाँति कृष्णपक्ष में किया जाता है। इस तप के करने से बाह्य एवं आभ्यन्तर आरोग्य की प्राप्ति होती है । मूलतः भव रोग के उच्छेद के लिए यह तप किया जाता है। यह अनागाढ़ तप गृहस्थ साधकों हेतु प्रस्थापित है। इसकी आचरण विधि इस प्रकार है - " एवं चिय किण्ह पक्खे गिलाणपडिजागरणाभिग्गहसारो निरुजसिंहो । " खमा. 12 तपो नीरुजशिखाख्यं हि, विधेयं नवरं कृष्ण पक्षे तु करणं विधिमार्गप्रपा, पृ. 25 तद्वदेव हि । शस्यते । । आचारदिनकर, पृ. 366 यह तप सर्वाङ्गसुन्दर तप की तरह ही किया जाता है। विशेष इतना है कि इसमें कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन से आठ उपवास एकान्तर आयंबिल के पारणा पूर्वक करें। इस तरह आठ उपवास और सात आयंबिल द्वारा 15 दिनों में यह तप पूर्ण होता है। इस तप के दिनों में रोगी की सेवा करने का नियम रखना चाहिए। इसका यन्त्र न्यास द्रष्टव्य है. 1 उद्यापन कायो. 12 — तस्य तप दिन- 15, कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक माला 20 कृष्ण प्र. द्वि. तृ. च. पं. ष. स. अ. न. तिथि तप उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ द. ए. द्वा. त्र. च. पू. इस तप की उद्यापन-विधि पूर्व तप की भाँति समझनी चाहिए।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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