________________
124... सज्जन तप प्रवेशिका
वस्त्र अथवा केसरिया वस्त्र का जोड़ा पहनकर शक्ति के अनुसार आभूषण धारण करें।
तदनन्तर अपनी अंजलि को अखण्ड अक्षतों से भरकर उस पर एक जायफल रखें तथा चैत्य की पहली प्रदक्षिणा देकर अंजली गृहीत सामग्री जिनेश्वर के सम्मुख रख दें। फिर दूसरी प्रदक्षिणा के पश्चात अंजलि गृहीत श्रीफल. युक्त अक्षतों को चढ़ा दें। फिर तीसरी प्रदक्षिणा देने के अनन्तर अंजलि पूरित अक्षतों एवं पर्ण सहित बिजौरा फल को प्रतिमा के समक्ष रख देवें। फिर चौथी प्रदक्षिणा देकर अक्षतों से भरी अंजलि एवं सुपारी फल को चढ़ाएं। तदनन्तर सप्त धान्य, लवण, एक सौ आठ हाथ का वस्त्र, 108 लाल चणोठी और केसरिया वस्त्र परमात्मा के आगे रखें। इस प्रकार चार वर्ष तक करें।
इस तप का यन्त्र इस प्रकार है -
तिथि
आ.शु.
प्रथम
11 उप.
द्वितीय
11 उप.
तृतीय
11 उप.
चतुर्थ 11 उप.
वर्ष
वर्ष - 4, तप दिन - 20
तिथि
आ. शु.
13 नी
तिथि
आ.शु.
12 ए.
12 ए.
12 ए.
12 ए.
13 नी.
13 नी.
13 नी.
तिथि
आ.शु.
14 3πT.
14 3πT.
14 3πT.
14 3TT.
तिथि
आ. शु.
15 fa.
15 fa.
15 fa.
15 fa.
उद्यापन- इस तप के समाप्त होने पर 108 पूर्ण कुम्भ दीपक सहित रखें तथा स्वर्ण की बत्ती वाला चाँदी का दीपक सुकुमारिका को दें। साधर्मिक- वात्सल्य एवं संघपूजा करें। यहाँ 108 दीपक पंचपरमेष्ठी के 108 गुणों के प्रतीक हैं। • गीतार्थ आज्ञानुसार इस तप के दौरान प्रतिदिन अरिहन्त पद की निम्न आराधना करें
जाप
साथिया खमा. कायो. माणिक्य प्रस्तारिका तपसे नमः 12
12
12
25. पद्मोत्तर तप
माला 20
पद्म अर्थात कमल, उत्तर अर्थात श्रेष्ठ । यहाँ श्रेष्ठ कमल का अभिप्राय लक्ष्मी है, क्योंकि लक्ष्मी कमल निवासिनी मानी जाती है । प्रायः चित्रों में लक्ष्मी