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________________ 122...सज्जन तप प्रवेशिका पट्ट की पूजा पूर्वक प्रति अमावस्या को उपवास, आयंबिल, नीवि या एकाशन करते हुए सात वर्षों में पूरा किया जाता है। यहाँ विधिमार्गप्रपाकार के अनुसार यह तप किसी भी शुभ दिन की अमावस्या से प्रारम्भ कर उसमें यथाशक्ति उपवास आदि कोई भी तप कर्म किया जा सकता है जबकि आचारदिनकर के कर्ता ने उपवास पर विशेष बल दिया है। इसके स्पष्टीकरणार्थ आचार दिनकर का पाठ है "उपवासैर्वा स्वशक्तित आचाम्लैक भक्तनिर्विकृतिकैर्वा तपः आरभ्यते" उपवास से अथवा स्वशक्ति के अनुसार आयंबिल, एकासना अथवा नीवि से भी यह तप प्रारम्भ कर सकते हैं। आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार यह तप दीपावली की अमावस्या से प्रारम्भ कर यथाशक्ति सात वर्ष अथवा एक वर्ष तक किया जाता है। इस तरह आचार दिनकर में इस तप के दो विकल्प प्रस्तुत किए गए हैं। ___नन्दीश्वर तप का दूसरा प्रकार निम्न हैदूसरी रीति नंदीश्वरतपो दीपोत्सव, दर्शादुदीरितः । सप्तवर्षाणि वर्ष वा, क्रियते च वदर्चने ।। आचारदिनकर, पृ. 355 नन्दीश्वर का तप दीपावली की अमावस्या से प्रारम्भ कर सात वर्ष अथवा एक वर्ष में उसकी पूजा द्वारा पूर्ण किया जाता है। यहाँ सात वर्ष तप करने का जो निर्देश किया है उसमें भी मतान्तर इस प्रकार है - दीपावली की अमावस्या को शुरू करके तेरह अमावस्या तक यह तप करें। फिर दूसरी दीपावली से शुरू करके तेरह अमावस्या तक यह तप करें। इस तरह चार बार करने से यह तप सात वर्षों में पूर्ण होता है। इसमें 52 उपवास होते हैं। तीसरी रीति सांप्रतं प्रवाहादेक वर्ष वा। आचारदिनकर, पृ. 355
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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