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________________ 120...सज्जन तप प्रवेशिका वर्तमान में यह तप उपवास या एकासना के द्वारा बारह चैत्री पूर्णिमाओं में किया जाता है। एक वर्ष की बारह पूर्णिमाओं में तप करने की परिपाटी प्रचलित नहीं है। दूसरा प्रकार सप्त-वर्षाणि वर्ष वा पूर्णमास्यां यथाबलं । कुर्वतां पुंडरीकाख्यं, तपस्तत्संज्ञकोच्यते ।। आचारदिनकर, पृ. 355 आचारदिनकर के अनुसार यह तप चैत्री पूर्णिमा से प्रारम्भ करके यथाशक्ति सात वर्षों में अथवा एक वर्ष में पूरा किया जाता है। इस विधि से सूचित होता है कि आचार्य वर्धमानसूरि ने देह सामर्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसके दो विकल्प प्रस्तुत किये हैं। यदि सामर्थ्य हो तो सात वर्ष पर्यन्त प्रत्येक पूर्णिमा को उपवासादि निर्धारित तप के द्वारा इसकी आराधना करनी चाहिए, अन्यथा पूर्ववत एक वर्ष पर्यन्त इसकी आराधना करें। उद्यापन - इस तप के प्रारम्भ दिन में पुण्डरीक स्वामी प्रतिमा की यथाशक्ति पूजा करें। आचार्य वर्धमानसूरि (आचारदिनकर पृ. 356) के मतानुसार केशरिया वस्त्र पहनकर सुगन्धित हल्दी के उबटन से पुण्डरीक स्वामी की पूजा करें। इस तप के पूर्ण होने पर स्त्री अपनी ननद की पुत्री को तथा पुरुष अपनी बहन की पुत्री को अत्यधिक स्वादिष्ट भोजन करवाकर हल्दी रंग के दो केशरिया वस्त्र, ताम्बूल, कंकण, नूपुर आदि देवें। साधु-साध्वियों को रजोहरण, पात्र, प्रचुर मात्रा में आहार आदि का दान करें तथा सात श्रावकों के घरों पर प्रचुर मात्रा में मिष्ठान्न भेजें। • गीतार्थ परम्परानुसार इस तप के दिनों में निम्न क्रियाएँ अवश्य करनी चाहिएजाप साथिया खमा. कायो. माला श्री पुण्डरीक गणधराय नमः 150 150 150 20 23. नन्दीश्वर तप जैन भूगोल के मन्तव्यानुसार यह सम्पूर्ण विश्व चौदह राजु परिमाण है। यह तीन भागों में विभक्त है- 1. ऊर्ध्वलोक 2. मध्यलोक और 3. अधोलोक। ऊर्ध्वलोक में मुख्य रूप से देवताओं और सिद्ध आत्माओं का वास है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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