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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...73 (च्यवन) जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष हुआ हो उस दिन जो तप किया जाता है उसे कल्याणक तप कहते हैं। किस कल्याणक में कौन सा तप करना चाहिए, इस सम्बन्ध में तीन प्रकारान्तर हैं।
आचारदिनकर, पृ. 340 आचार्य वर्धमानसूरि के मतानुसार त्रिविध रीतियाँ इस प्रकार हैं -
प्रथम रीति – प्रथम रीति के अनुसार जिस दिन एक कल्याणक हो उस दिन एकासन करें, दो कल्याणक हों उस दिन नीवि करें, तीन कल्याणक हों उस दिन आयम्बिल करें, चार कल्याणक हों उस दिन उपवास करें और पाँच कल्याणक हों तो पहले दिन उपवास तथा दूसरे दिन एकासना करें।
इस प्रकार प्रत्येक तीर्थङ्कर के पाँच कल्याणक होने से चौबीस तीर्थङ्करों के 120 कल्याणकों की आराधना यदि एकाशन से करनी हो तो मिगसर शुक्ला दशमी को आयम्बिल करे और मिगसर शुक्ला एकादशी को उपवास कर सात कल्याणक तप की पूर्ति कर सकते हैं। मिगसर शुक्ला दशमी को दो तथा मिगसर शुक्ला एकादशी को पाँच कल्याणक हुए हैं। दोनों दिन के सात कल्याणक होते हैं।
दूसरी रीति – इसके अनुसार तीर्थङ्करों के च्यवन एवं जन्म-कल्याणक के दिन एक-एक उपवास करें तथा दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक के दिन जिस परमात्मा द्वारा जो तप किया गया है, वही तप एकान्तर पूर्वक करें।
तीसरी रीति - तीसरे विकल्प के अनुसार चौबीस तीर्थङ्करों के प्रत्येक कल्याणकों में उपवास आदि तप करें। उसमें मिगसर शुक्ला दशमी व एकादशी को बेला करके यह तप शुरू करें। फिर प्रत्येक कल्याणक के दिन उपवास करना चाहिए। एक दिन में दो या अधिक कल्याणक आते हों तो एक उपवास से एक कल्याणक की आराधना होगी, शेष कल्याणकों की आराधना अगले-अगले वर्ष करनी चाहिए।
वर्तमान में कल्याणक तप की यही परिपाटी प्रचलित है। आजकल कुछ आराधक एकासन से भी कल्याणक तप करते हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ष करते हुए सात वर्ष में यह तप पूरा होता है। कल्याणक-तप के दिनों का विवेचन आगम