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________________ 64...सज्जन तप प्रवेशिका पूजा करनी चाहिए। तीसरी विधि तीसरी रीति के अनुसार इस तप में प्रथम एक अट्ठम (तेला) करके पारणा, फिर एकान्तर तीस उपवास, फिर पुन: एक अट्ठम (तेला) करके पारणा, फिर एकान्तर से तीस उपवास और अन्त में एक अट्ठम करके पारणा करते हैं। ___इस तरह प्रस्तुत रीति में 69 उपवास और 63 पारणा ऐसे कुल 132 दिनों में यह तप पूर्ण होता है। चौथी रीति के अनुसार विधाय प्रथमं षष्ठं, षष्ठिमेकान्तरास्तथा । उपवासान् धर्मचक्रे, कुर्याद्वहल्यर्क वासरैः ।। आचारदिनकर, पृ. 330 इस तप के प्रारम्भ में बेला (निरन्तर दो उपवास) करके पारणा किया जाता है। उसके बाद साठ उपवास एकान्तर पारणे से करते हैं। इस प्रकार यह तप 123 दिनों में पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप की गरिमा बढ़ाने हेतु जिनप्रतिमा के सम्मुख रत्नजड़ित स्वर्ण अथवा चाँदी का धर्मचक्र बनवाकर रखें। उसके बाद संघपूजा करें। • इस तप की विशिष्ट आराधना के लिए इन दिनों अरिहन्त पद का स्मरण करना चाहिए। जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री धर्मचक्रिणे अरिहंताय नमः 12 12 12 20 29. लघुअष्टाह्निका तपद्वय यह तप आठ-आठ दिनों का होने से अष्टाह्निका तप के नाम से कहा जाता है। पूर्वाचार्यों के अभिमतानुसार इस तप की आराधना से दुर्गति का अभाव और सद्गति का सर्जन होता है। यह तप नवपद ओलिजी के दिनों में किया जाता है उन दिनों मनुष्य तो क्या देवी-देवता भी परमात्म भक्ति में जुटे रहते हैं। साधना-सिद्धि के लिए भी
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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