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ज्ञान योग के गौरव पुरुष श्री महेन्द्रसिंहजी नाहटा परिवार तन में मन में रोम-रोम में
नख से शिखा पर्यन्त । जिन शासन भक्ति निःसृत होती
बनकर सरीत अनन्त ।। श्रावक जीवन के आवश्यक विविध गुणों में एक प्रमुख गुण हैं शासन समर्पण। समर्पण की धूरि पर चलकर ही व्यक्ति उत्तुंग शिखर तक पहुँच सकता है। गौतम, तुलसी, मीरा, सुदामा आदि ने इसी पथ को अपनाकर जीवन को सफल एवं भक्ति को अमर कर दिया। __मूलत: जैसलमेर निवासी श्री महेन्द्रसिंहजी नाहटा एक ऐसे ही संघ समर्पित कार्यकर्ता हैं। आपका जन्म ईस्वी सन् 1946 में भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ। इन्दौर नगरी में बी.काम पूर्ण कर आपने व्यापारिक कारणों से कोलकाता की ओर कदम बढ़ाए।
प्राचीन प्रतिमाओं की नगरी जैसलमेर में माता-पिता ने आपको परमात्म भक्ति के संस्कारों से नवाजा। उनकी शिक्षाएँ आज भी आप में नख से शिखा तक सतत प्रवाहित हो रही है। सकल जैन समाज में आपकी छवि एक सरल हृदयी, कर्तव्य निष्ठ, सेवाभावी, प्रभु भक्त, श्रावकरत्न के रूप में विख्यात है। प्रतिष्ठा, दीक्षा, वरघोडा आदि के कार्यक्रम हो अथवा चातुर्मासिक आराधना आप सदा अग्रणी रहते हैं। अपने सामर्थ्य, समय एवं संपदा तीनों का अहोभाव पूर्वक भोग देते हैं।
जिनपूजा, सामायिक, प्रत्याख्यान आदि श्रावक योग्य कर्त्तव्यों का पालन आप नियमित करते हैं। साधु-साध्वी वैयावच्च एवं साधर्मिक भक्ति हेतु आपकी तत्परता अनुशंसनीय है।
कोलकाता खरतरगच्छ संघ में आप मंत्री पद पर मनोनीत हैं। इसी प्रकार