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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...125 विधि
दायें हाथ की हथेली को छाती के अग्रभाग पर स्थिर करें। फिर तर्जनी अंगुली पीछे की तरफ झुकी हुई और उसका अग्रभाग अंगूठे के नाखून के नीचे के भाग का स्पर्श करता हुआ हो, मध्यमा अंगुली झुकी हुई और तर्जनी के दूसरे जोड़ का स्पर्श करती हुई हों, अनामिका अंगुली मुड़ी हुई और मध्यमा के दूसरे जोड़ का स्पर्श करती हुई हों तथा कनिष्ठिका अंगुली मुड़ी हुई और अनामिका के दूसरे जोड़ का स्पर्श करती हुई हों इस प्रकार कामजय मुद्रा बनती है।27 सुपरिणाम
• इस मुद्राभ्यास से अनुचित कामवेग को शान्त किया जा सकता है। किसी परिस्थिति विशेष में बढ़ती वासना को कुंठित करने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग इंजैक्शन जैसा कार्य करता है। इससे मन पर तत्काल अंकुश लगता है अतः यह मुद्रा सभी के लिए उपयोगी है। यह मुद्रा उन साधकों के लिए निर्विवादतः उपयोगी है जो कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए तत्पर तो हैं परन्तु जागृत कर नहीं पाते।
• इस मुद्रा से निम्नांकित ग्रन्थियों आदि के दोषों का उपशमन होता है तथा इससे तद्स्थानीय सभी प्रकार के अच्छे कार्य सिद्ध होते हैं
चक्र- मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि, जल एवं वायु तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्रतैजस, स्वास्थ्य एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं एवं रक्त संचरण तंत्र शारीरिक समस्याएँ- खून की कमी, शरीर में गन्ध, दाद-खाज, नपुंसकता, मधुमेह, अल्सर, एलर्जी, दमा, वायु विकार, प्रजनन तंत्र की समस्या, हृदय रोग, छाती में दर्द, फेफड़ों में विकार आदि का उपशमन होता है। भावनात्मक समस्याएँ- नशेबाजी, बेहोशी, असृजनशीलता, दुखीपन, अनुत्साह, निर्ममता, अविश्वास, काम-वासना का असंतुलन, क्रोधादि कषायों की उत्तेजना, निष्क्रियता, अव्यावहारिकता आदि का निवारण होता है।
भारतीय ऋषियों ने मानव शरीर पर कई खोजें की हैं उन्हीं खोजों के आधार पर प्राणायाम, ध्यान, आसन मुद्रा आदि की वैज्ञानिक विधियाँ निर्धारित