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116... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
• इस मुद्रा में अग्नि तत्त्व एवं आकाश तत्त्व का संयोजन होने से आकाश मुद्रा के सभी परिणाम प्राप्त होते हैं जैसे - कर्ण शक्ति विकसित होती है, कान सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है, हृदय रोग दूर होते हैं और अस्थियाँ परिपुष्ट बनती हैं।
• तर्जनी अंगुली का अग्रभाग भी दाब से प्रभावित होता है इससे वायु सम्बन्धी सर्व प्रकार के रोगों का उपशमन होता है।
• ज्योतिष के अनुसार मध्यमा शनि की अंगुली है। अग्नि और शनि तत्त्व के मिलन से आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।
वैदिक परम्परा में भगवान को भोग चढ़ाते वक्त और यज्ञ करते वक्त ‘व्यानः स्वाहाः' शब्द का प्रयोग करते हुए इस मुद्रा से आहूति दी जाती है। 29. उदान मुद्रा
शरीरस्थ पाँच प्राणों में से एक प्राण वायु का नाम है उदान वायु । उदान शब्द की रचना संस्कृत के 'उद्' उपसर्ग, 'अन्' और 'अच्' प्रत्यय के योग से हुई है। यह वायु मुख्यतया कण्ठ स्थान में रहता है और दोनों हाथ-पैर में भी रहता है।
उदान मुद्रा