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114... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
• इस मुद्रा को एक हाथ से करने पर निम्न ग्रन्थियों आदि के दुष्प्रभाव समाप्त होते हैं
चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली।
• एक्यूप्रेशर के अनुसार इसमें दाब के जो केन्द्र बिन्द हैं उससे श्वासनली एवं आमाशय के रोग दूर होते हैं। मूत्र सम्बन्धी दोष भी दूर होते हैं। इस मुद्रा में अग्नि-आकाश-पृथ्वी इन तत्त्वों का संयोजन होता है जिसके फलस्वरूप उपरोक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं। 28. व्यान मुद्रा
प्रत्येक देहधारी जीव सत्ता में पाँच प्रकार की वायु स्थित है। सभी वायुओं के अपने अलग-अलग कार्य हैं, शरीर में उनके पृथक्-पृथक् स्थान हैं। जैसे प्राण वायु मुख्य रूप से हृदय स्थान पर हैं और नाभि से लेकर कंठ-पर्यन्त फैला हुआ है। अपान वायु का स्थान नाभि के निम्न भाग से लेकर मलद्वार के भीतर मूत्रेन्द्रिय तक है। इसी तरह व्यान वायु शरीर के समस्त अवयवों में व्याप्त है।
व्यान मुद्रा