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112... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
निर्देश- 1. इस मुद्रा के परिणामों को पाने के लिए उत्कटासन सर्वश्रेष्ठ बतलाया गया है। अपवादतः सुखासन आदि किसी भी ध्यान आसन का प्रयोग कर सकते हैं।
2. इस मुद्रा को प्रतिदिन 48 मिनट करने पर ही पूर्ण अभ्यास कहलाता है। यदि एक साथ 48 मिनट की अवधि पूरी न कर सकें तो इसे तीन बार में 16-16 मिनट करें। उक्त कोटि का अभ्यास व्यक्ति को अनुभूति के स्तर तक पहुँचाता है।
3. इस मुद्रा के प्रयोग हेतु निश्चित समय का प्रावधान नहीं है, यथानुकूलता किसी भी वक्त कर सकते हैं। सुपरिणाम
• शारीरिक जगत की अपेक्षा अपान वायु की कमी से शरीर में अनेक व्याधियाँ जन्म ले लेती हैं। इसकी कमी होने पर देहगत अशुद्ध तत्त्वों को विसर्जित करने में भी कठिनाई आती है। फलत: यह शरीर अनेक व्याधियों एवं मलिन द्रव्यों का घर बन जाता है जबकि अपान मुद्रा का नैरन्तर्य प्रयोग शरीर को हर प्रकार से शुद्ध करता है। __ • इसका प्रयोग शरीर के लिए आग में तपाने के समान है क्योंकि इससे रक्त शुद्ध होता है और शरीर पवित्र रहता है। अपान वाय का स्थान स्वाधिष्ठान चक्र, मूलाधार चक्र, पेट, नाभि, गुदा, लिंग, घुटना, पिंडी और जांघ में माना गया है। इस मुद्रा से इन सभी स्थानों पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। यदि मूत्र बंद की तकलीफ हो, तब 45 मिनट यह मुद्रा करने से पेशाब खुलकर आता है। कब्ज की शिकायत में राहत देता है, मलावरोध की समस्या दूर हो जाती है।
• इसी तरह पेट के विकार दूर होते हैं। उल्टी, हिचकी या जी मचलता हो तो शान्ति मिलती है। पेट के हर एक अवयव की क्षमता बढ़ती है और हृदय शक्ति सम्पन्न बनता है। __ • पसीना कम होता हो या बहुत अधिक होता हो तो इस मुद्रा से फायदा होता है। नाभि या गर्भाशय अपनी जगह से हट जायें तब इस मुद्रा से अपने स्थान में आ जाते हैं। एक संशोधक के अनुसार गर्भवती स्त्रियाँ आठवें महीने में इस मुद्रा का निरंतर प्रयोग पैंतालीस मिनट करें तो प्रसव बिना किसी कष्ट के अपने निश्चित समय पर हो सकता है। यदि किसी गर्भवती स्त्री को प्रसव में