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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ... 65
है। सुखी जीवन का राज विवेक है। जहाँ विवेक हो वहाँ प्रतिकूल अनुकूल बन जाता है, दुःख-सुख में बदल जाता है, संघर्ष - शान्ति में परिवर्तित हो जाता है। हंसी मुद्रा का प्रयोजन बुझे हुए विवेक रूपी दीप को प्रज्वलित करना है। योग परम्परा में प्रचलित यह मुद्रा शांति और पौष्टिकता के जरूरतों को पूर्ण करने की सूचक है।
विधि
हंसी मुद्रा के तीन प्रकारान्तर हैं- प्रथम विधि के अनुसार स्वयं के लिए जो भी आसन अनुकूल हो उसमें बैठ जायें। उसके पश्चात तर्जनी - मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को एक-दूसरे से स्पर्श करते हुए निकट रखें। फिर अंगूठे के अग्रभाग़ को हल्का सा दबाव देते हुए मध्यमा अंगुली के मध्य इस तरह रखें कि अंगूठे का स्पर्श अनामिका और तर्जनी अंगुलियों से भी हो, कनिष्ठा अंगुली को सीधा रखें यह हंसी मुद्रा है। 10
हंसी मुद्रा-2