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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...63 सुपरिणाम
• समन्वय मुद्रा के निम्नोक्त परिणाम बताए गए हैं
• भौतिक दृष्टि से पाँचों अंगुलियों के अग्रभाग परस्पर योजित होने से तत्स्थानीय पाँच तत्त्वों का सम्मिलन होता है उससे तत्त्वों का संतुलन बना रहता है।
• पंच तत्त्वों का सम्मिलन होने पर चेतना से उस तरह की शक्ति निःसृत होती है जिससे मंत्र शक्ति के प्रायोगिक शक्ति का कोई सामना नहीं कर पाता।
• यह मुद्रा शक्तिशाली और अत्यधिक रहस्यमय योग स्थिति की मुद्रा है। यदि इस मुद्रा का प्रयोग सम्यक रूपेण किया जाये तो साधक की प्रकृति में अतुल पराक्रम और शक्ति का उदय हो सकता है। चेतना शक्ति का विकास होता है। मन:शक्ति निरन्तर बढ़ती जाती है। अनिष्ट शक्तियों का निवारण होता है और इष्ट कार्य की उपलब्धि होती है।
• अध्यात्म दृष्टि से सौहार्द्रता, परदुःखकातरता, सहिष्णुता, मित्रता, ऋजुता जैसे उच्चस्तरीय गुणों का जन्म होता है। इस मुद्रा पूर्वक साधना करने से स्वाभाविक शक्तियाँ उजागर होती है।
• यौगिक परम्परा की यह प्रभावशाली मुद्रा शक्ति केन्द्रों के असंतुलन को संतुलित करती है इससे तज्जनित समस्त प्रकार के अच्छे लाभ हासिल होते हैं
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे।
विशेष- पौराणिक वैदिक परम्परा में माना जाता है कि भगवान विष्णु ने सूकर अवतार में पृथ्वी का अपने दांतों से उत्खनन कर उसे प्रगट करने का महान पराक्रम किया था, इस वजह से भी इस मुद्रा को शक्तिशाली मुद्रा के रूप में स्वीकार किया गया है। इस मुद्रा का प्रयोग समस्त अभिचार संबंधी विधानों हेत् एवं अनिष्ट कार्यों के लिए किये गए यज्ञ के विधान में किया जाता है। इस मुद्रा के द्वारा मारण, उच्चाटन तथा अन्य मारक प्रयोगों में तत्सम्बन्धी मन्त्र का उच्चारण करते हुए आहुति दी जाती है। इस मुद्रा का प्रयोग अनिष्टकारी तान्त्रिक