________________
परिशिष्ट-I
विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास
योग एक प्राकृतिक विज्ञान है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने पारम्परिक ज्ञान, उच्च साधना एवं गहरी खोजों के आधार पर इनकी संसिद्धि की है। यह प्राच्य विद्या होने से इसके रहस्यपूर्ण तथ्य संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं में निबद्ध है। यद्यपि आज इन्हें जन ग्राह्य हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवादित कर सुगम्य बना दिया गया है। परन्तु आज के Convent शिक्षित लोगों के लिए इसमें प्रयुक्त रहस्यपूर्ण पारिभाषिक शब्दों को समझना कठिन है। कई बार नित्य प्रयुक्त होने वाले शब्दों से हम परिचित होते हैं परन्तु उनके बारे में ठोस जानकारी नहीं होती। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर योग साधना में प्रयुक्त कुछ प्रमुख शब्दों को सरल रीति से यहाँ समझाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे मुद्रा साधना अधिक सहज और सुगम हो जाएगी।
आसन- शरीर की ऐसी स्थिति, जिसमें कष्ट न हो। वह आसन कहा जाता है।
उज्जायी प्राणायाम- सुखासन में बैठकर बाह्य वायु को दोनों नासारन्ध्रों में खींचना और आन्तरिक वायु को हृदय एवं कष्ठ से खींचते हुए कुम्भक करना। फिर जालंधर बन्ध लगाते हुए यथाशक्ति स्थिर रहना उज्जायी प्राणायाम कहलाता है।
उज्जायी शब्द में 'उद्' 'उपसर्ग ऊपर की ओर' इस अर्थ को सूचित करता है। इसमें बाह्य एवं भीतरी वायु को ऊपर की ओर खींचा जाता है एवं छाती का भाग ऊपर उठ जाता है इसलिए इसका नाम उज्जायी है।
इस प्राणायाम में भीतर की वायु को खींचकर जब कुम्भक लगाते हैं उस समय कंठ द्वार को थोड़ा सा संकुचित करें। यदि कंठद्वार का संकुचन ठीक ढंग से किया गया है तो पेट में भी हल्के संकुचन का अनुभव होगा। साथ ही श्वासप्रश्वास करते समय गले में निरन्तर एक विशेष आवाज आती हुई मालूम पड़ेगी।