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122... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग से संबंधित सभी प्रकार की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
• मुँह से भीतर जाने वाले वायु-प्रवाह का सम्पर्क मुँह की दीवारों से होता है। यह अभ्यास अनेक बीमारियों को रोकने या दूर करने में मदद करता है।
• कौवे की आयु बहुत लम्बी होती है तथा वह अन्य पक्षियों की अपेक्षा प्राय: अधिक स्वस्थ रहता है अत: इस मुद्रा के विषय में कहा जाता है कि इसके सतत अभ्यास से रोग मुक्ति और दीर्घायु प्राप्त होती है।
• योग के अधिकतर अभ्यास शरीर में ताप का निर्माण करते हैं लेकिन काकी मुद्रा शरीर को शीतलता प्रदान करती है। यह अभ्यास मन को भी शांत करता है, मानसिक तनाव का शमन करता है। इससे उच्च रक्त चाप इत्यादि मनोदैहिक रोगों का भी निराकरण हो जाता है तथा पाचन शक्ति का विकास होता है।
• महर्षि घेरण्ड के अनुसार देह आरोग्यता के लिए योगी पुरुषों को यह मुद्रा अवश्य करनी चाहिए। इस मुद्रा को गुप्त रखने का भी उल्लेख किया गया है।82
• विदेही साधकों के अनुसार इस मुद्राभ्यास से सूक्ष्म शरीरगत शक्ति स्थानों के द्वार खुलते हैं जिसके परिणामस्वरूप विशिष्ट चक्र आदि प्रभावित होकर तज्जनित रोगों का निवारण करते हैं। संप्रभावित शक्ति केन्द्रों का चार्ट इस प्रकार है___ चक्र- मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि, जल एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, स्वास्थ्य एवं शक्ति केन्द्र। 20. मातंगिनी मुद्रा
संस्कृत भाषा में हाथी को मातंग और हथिनी को मातंगिनी कहते हैं। सृष्टि जगत में हाथी को सर्वाधिक बलशाली माना गया है। जब हाथी होश में होता है उसकी शक्ति हजार गुणा बढ़ जाती है उसी तरह जब साधक विभाव से स्वभाव, राग से विराग, बहिर्मुख से अन्तर्मुख की ओर प्रवृत्त होता है तब उसकी चेतनाशक्ति अनन्त गुणा बढ़ जाती है। इस मुद्राभ्यास का मूल ध्येय शक्ति सम्पन्न आत्मा को अपनी शक्ति का अहसास एवं बोध करवाना है।