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________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...63 • मंद और गहरे श्वसन के परिणामस्वरूप मन एवं शरीर की शिथिलता के साथ-साथ बायोप्लाज्मिक शरीर भी संतुलित हो जाता है। इसके अतिरिक्त गले से निकलने वाली ध्वनि के प्रभाव स्वरूप हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व सौम्य हो जाता है। यदि कोई उस ध्वनि के प्रति सजग रहे तो वह उनके लाभों का तुरन्त अनुभव कर सकता है। • यह मुद्रा अनिद्रा रोगियों के लिए विशेष उपयोगी है। यथार्थ में नभो मुद्रा साधारण कार्य नहीं है, यह एक रहस्यमयी अभ्यास है जिसके द्वारा अनेक रोग नष्ट किये जा सकते हैं। इसमें जिह्वा मुड़कर ऊपर पहुँच जाये और वहाँ कुछ मिनट तक स्थिर रह सके, तभी उसमें कुछ सफलता समझनी चाहिए। 3. उड्डीयान बन्य मुद्रा ___संस्कृत शब्द उड्डीयान का अर्थ है ऊपर उठना या उड़ना। बंध का अर्थ है बांधना। इस बंध मुद्रा में उदर प्रदेश को छाती की ओर अर्थात ऊपर की तरफ उठाया जाता है तथा शारीरिक बन्ध लगाकर प्राण को सुषुम्ना के निकट पहुँचाया जाता है जिससे वह सुषुम्ना के साथ ऊर्ध्वगामी बनता है (सुषुम्ना नाड़ी मेरुदण्ड के सभी चक्रों से होती हुई सबसे ऊपर सहस्रार चक्र में जाती है। इसलिए इस बंध का नाम उड्डीयान बन्ध है। __ यह मुद्रा सुषुम्ना नाड़ी में निरुद्ध प्राण वायु को ऊर्ध्वगामी बनाने के उद्देश्य से की जाती है। विधि • उड्डीयान बंध करने के लिए ध्यान के उत्तम आसन में बैठ जायें। • दोनों घुटने जमीन से सटे हुए रहें। • दोनों हथेलियाँ दोनों घुटनों पर रखें। • सम्पूर्ण शरीर को शिथिल कर दें। • दोनों आँखें बन्द कर लें। • जितनी गहराई से श्वास को बाहर छोड़ सकते हैं छोड़ें। • श्वास को बाहर ही रोककर रखें। फिर जालन्धर बंध करें। • तत्पश्चात दोनों हाथों से घुटनों पर दबाव देते हुए नाभिस्थल को ऊपर की ओर तथा उदर को नीचे ओर पीछे की तरफ खींचकर मेरुदण्ड के साथ लगाने का प्रयत्न करें।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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