________________
गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियों ...429
उपकेशिनी मुद्रा
सुपरिणाम
• इस मुद्रा का नियमित प्रयोग पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित रखता है। यह शरीर के वजन, अस्थितंत्र एवं स्थूलता आदि को नियंत्रित रखती है। • मूलाधार एवं आज्ञा चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण करती है। सहजानन्द की प्राप्ति करवाती है एवं अतिन्द्रिय शक्तियों का जागरण करती है। • शक्ति एवं दर्शन केन्द्र को सक्रिय करने में यह मुद्रा विशेष उपयोगी है। यह उत्तेजना आदि को नियंत्रित कर पूर्वाभास, अतिन्द्रिय शक्ति एवं अन्तर्दृष्टि का विकास करती है। • प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि के कार्यों का नियमन करते हुए यह मुद्रा शारीरिक गर्मी को संतुलित रखती है तथा व्यवहार को सुंदर एवं वाणी को मधुर बनाती है। यौन विकार एवं प्रजनन अंग की समस्याओं का निवारण करती है। साधक बुद्धिशाली, तत्त्वज्ञानी, कवि, लेखक, मानव जाति का प्रेमी बनता है।