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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...411 सुपरिणाम
चक्र- विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ,रक्त संचरण तंत्र, ऊपरी मस्तिष्क, आँख। 87. सन्-को-इन् मुद्रा
प्रस्तुत मुद्रा के दो प्रकारान्तर हैं। यह गर्भधातुमण्डल-वज्रधातुमण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं में तीन कांटा युक्त वज्र को दर्शाने के उद्देश्य से की जाती है। शेष वर्णन पूर्ववत। प्रथम प्रकार
अंगूठा और कनिष्ठिका के अग्रभागों को संयुक्त कर शेष तीन अंगुलियों को ऊपर की तरफ सीधा फैलाने पर ‘सन्-कौ-इन्' मुद्रा का प्रथम प्रकार बनता है।103
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सन्-की-इन् मुद्रा-1