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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियों ...405 एड्रिनल के स्राव को संतुलित कर पोटेशियम, सोडियम और जल के प्रमाण को संतुलित रखती है। व्यक्ति को साहसी, निर्भयी, सहनशील एवं आशावादी बनाती है तथा आन्तरिक तंत्रों के कार्यों का सुचारू संचालन करती है। 81. रै-इन् मुद्रा
भारत में इसे घण्टा मुद्रा कहते हैं क्योंकि इस मुद्रा में घण्टा जैसी आकृति दिखती है। यह एक हाथ से की जाती है और यह मुद्रा हर्ष, संतोष एवं मन्दिर में देवी-देवताओं के आगमन की सूचक है। शेष पूर्ववत। विधि
दायें हाथ की अंगुलियों को एक साथ कर, अंगूठे को अन्दर की तरफ मध्यमा से स्पर्श करवायें फिर हाथ को कलाई क्षेत्र से नीचे मोड़ते हुए मध्यभाग की ओर घुमाने पर 'रै-इन्' मुद्रा बनती है।97
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दै-इन मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं वायु तत्त्व का संतुलन करते हुए स्वाभाविक रुक्षता को दूर कर शीतलता का अनुभव करवाती है। • स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र को जागृत कर व्यक्ति को महाज्ञानी, कवि, शान्तचित्त निरोगी एवं दीर्घ जीवी