________________
404... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन 80. रत्न कलश मुद्रा ___मुद्रा नाम के अनुरूप यह मुद्रा रत्नों से पूरित कलश को सूचित करती है।
शेष वर्णन पूर्ववत। विधि ___दोनों हथेलियों को सटाकर मध्यभाग में रखें, अंगूठे ऊपर उठे हुए रहें, . तर्जनी मुड़कर अंगूठों के अग्रभागीय प्रथम पोर का स्पर्श करें तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका एक-दूसरे के अग्रभागों का स्पर्श किये रहने पर रत्नकलश मुद्रा बनती है।96
रत्न कलश मुद्रा सुपरिणाम
• इस मुद्रा के प्रयोग से अग्नि एवं आकाश तत्त्व संतुलित रहते हैं। जिससे हृदय एवं पाचन तंत्र के कार्य का नियमन होता है। • आज्ञा, सहस्रार एवं मणिपुर चक्र को जागृत कर यह मुद्रा कार्य शक्ति का वर्धन, स्मरण शक्ति का संतुलन एवं कामेच्छाओं का नियंत्रण करती है। • पिनियल, पिच्युटरी एवं