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392... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम
• यह मुद्रा वायु एवं आकाश तत्त्व का संतुलन करते हुए शरीरस्थ विष द्रव्य, विजातीय तत्त्व एवं विकृत भावों का परिहार करती है तथा हृदय, गुर्दे एवं फेफड़ें से सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण करती है। . अनाहत एवं आज्ञा चक्र के जागरण में सहयोगी बनते हुए वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह, प्रेम, करुणा, सेवा, सहानुभूति आदि का विकास करती है। चित्त को एकाग्र एवं बुद्धि को कुशाग्र बनाती है। • आनंद एवं दर्शन केन्द्र को सक्रिय करते हुए असंयम, उत्तेजना, क्रोधादि कषायों आदि का उपशमन करती है। भावों को निर्मल एवं परिष्कृत कर बाह्यजगत से अन्तर्जगत की ओर अभिमुख करती है। द्वितीय प्रकार ___ दूसरे प्रकार में मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका अग्रभागों पर अन्तर्ग्रथित हुई रहती है। शेष वर्णन पूर्व मुद्रा के समान है।84
मुशो फुशि-हन् मुद्रा-2 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व को नियंत्रित करते हुए जठर, तिल्ली, यकृत, स्वादुपिंड, वीर्य, लसिका आदि के कार्यों का संतुलन करती है। पाचन