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378... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम
• आकाश तत्त्व का नियमन कर यह मुद्रा शरीरस्थ विषद्रव्य एवं विजातीय तत्त्वों का निकास करती है और भावधारा को निर्मल बनाती है। • इस मुद्रा के प्रयोग से सहस्रार एवं आज्ञा चक्र का जागरण होता है। • ज्ञान एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित कर यह मुद्रा इन्द्रिय संवेदनाओं की अनुभूति, प्राग्अवबोध, अतिन्द्रिय ज्ञान को प्रकट करती है। 59. के-बोसत्सु इन् मुद्रा ___यह संयुक्त मुद्रा पुष्पपूजा की सूचक कही गई है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि __उभय हथेलियों को ऊर्ध्वाभिमुख करते हुए अंगुलियों को मध्यभाग की
ओर फैलायें तथा किंचित झुकाने एवं अंगुलियों को समीप करने पर 'केबोसत्सु-इन्' मुद्रा बनती है।
के-बोसन्सु-हन् मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा वायु तत्त्व को संतुलित रखती है। इससे हृदय में रक्त अभिसंचरण, श्वसन, मल-मूत्र आदि का नियमन होता है। • अनाहत एवं विशुद्धि चक्र के संप्रभावित होने से आन्तरिक ज्ञान, कवित्व, वक्तृत्व आदि कलाओं का जागरण, हृदयरोग पर नियंत्रण, शोकहीन जीवन एवं शान्तचित्त की प्राप्ति होती है। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार इस मुद्रा के प्रयोग से बालकों